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उपासना एवं आरती >> श्रीगंगासहस्त्रनामस्तोत्रम

श्रीगंगासहस्त्रनामस्तोत्रम

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6127
आईएसबीएन :00000

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इसमें गंगाजी के 1000 नाम दिए गए हैं।

Shri Ganga Sahashtranamstotram -A Hindi Book by Gitapress Gorakhpur - श्रीगंगासहस्त्रनामस्तोत्रम - गीताप्रेस

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

।।श्रीहरि:।।

संक्षिप्त प्रयोग-विधि

सर्वप्रथम स्नान आदि से पवित्र हो जाय। जब सहस्रनामस्तोत्र का पाठ करना हो अथवा सहस्रार्चन करना हो, श्रीगायत्रीजीकी प्रतिमा को अपने सम्मुख किसी काष्ठपीठ आदि पर यथाविधि स्थापित कर ले, अपने बैठने का आसन भी लगा ले। पूजन आदि की सभी सामग्रियों को यथास्थान रखकर अपने आसन पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख बैठ जाय। दीपक जलाकर पूर्वाभिमुख रख दे और हाथ धो ले। ‘दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते’ कहकर पुष्प अर्पित कर कर्मसाक्षी दीपक का पूजन कर ले। तिलक लगा ले तथा निम्न मंत्रों से आचमन करे-

‘ॐ केशवाय नम:। ॐ नारायणाय नम:। ॐ माझवाय नम:।’

तथा ‘ॐ हृषीकेशाय नम:’ कहकर हाथ धो ले।
निम्न मंत्रों से अपने ऊपर जल छिड़ककर मार्जन कर ले-

ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
य: स्मेरत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।

ॐ पुण्डरीकाक्षं पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु।

तदन्तर दाहिने हाथ में जल, पुष्प तथा अक्षत लेकर निम्न संकल्प करे-

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: भामद्भागवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतित मे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे........नगरे/ग्रामे.....वैक्रमाब्दे......संवत्सरे....मासे.....पक्षे....तिथौ.....वासरे.....गोत्र: शर्मा/वर्मा/गुप्तोऽहं श्रीगायत्रीप्रीत्यर्थं* सहस्रनामस्तोपाठं करिष्ये।
(यदि सहस्रार्चन करना हो तो ‘सहस्रनामार्चनं करिष्ये’-ऐसा बोलना चाहिये।)
हाथ का जलाक्षत छोड़ दे।





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